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SYL नहर विवाद पर केंद्र ने बढ़ाया कदम: जल शक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल की अध्यक्षता में पंजाब-हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक

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संवाददाता: | 10.07.2025 | Mission Sindoor |

देश के दो प्रमुख राज्यों पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों से लंबित सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद को सुलझाने के प्रयासों के तहत बुधवार को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी. आर. पाटिल की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री श्री भगवंत सिंह मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी शामिल हुए। यह बैठक एक सौहार्द्रपूर्ण और रचनात्मक वातावरण में संपन्न हुई, जिसमें दोनों राज्यों ने विवाद के शीघ्र समाधान की प्रतिबद्धता जताई।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित इस उच्चस्तरीय बैठक का उद्देश्य वर्षों से चले आ रहे जल विवाद को न्यायसंगत और सहमति-आधारित समाधान की ओर ले जाना था। इसमें तय किया गया कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अगले महीने अगस्त में पुनः केंद्रीय जल शक्ति मंत्री के साथ बैठक करेंगे, ताकि वार्ता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।

सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना की परिकल्पना 1981 में की गई थी, जिसका उद्देश्य सतलुज नदी से हरियाणा को यमुना बेसिन में जल उपलब्ध कराना था। पंजाब ने इस पर कानूनी और राजनीतिक आपत्तियाँ जताई थीं, जबकि हरियाणा ने इसे अपने जल अधिकार का प्रश्न माना। सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों और सिफारिशों के बावजूद यह विवाद अब तक सुलझ नहीं पाया है।

हरियाणा का दावा है कि उसे SYL नहर के माध्यम से अपने हिस्से का जल मिलना चाहिए, जबकि पंजाब का तर्क है कि राज्य के पास अतिरिक्त जल उपलब्ध नहीं है और यह उसकी कृषि और जनजीवन के लिए हानिकारक होगा। इस मुद्दे ने दोनों राज्यों के संबंधों को बार-बार तनावपूर्ण बना दिया है और राजनीतिक विमर्श में भी इसकी केंद्रीय भूमिका रही है।

बैठक के बाद जल शक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल ने कहा कि, “पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों ने रचनात्मक दृष्टिकोण से SYL मामले को देखा और इसे जल्दी हल करने की इच्छा जताई। यह एक सकारात्मक संकेत है कि दोनों राज्य वार्ता के लिए प्रतिबद्ध हैं।” उन्होंने कहा कि समाधान संविधान और कानून की भावना के अनुरूप होना चाहिए।

बैठक में यह भी तय किया गया कि अगली बैठक अगस्त 2025 के पहले सप्ताह में आयोजित की जाएगी, जिसमें अब तक हुई बातचीत की प्रगति और तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। उम्मीद की जा रही है कि यह संवाद प्रक्रिया न्यायसंगत जल बंटवारे के एक स्थायी समाधान की ओर बढ़ेगी।

यह पहली बार नहीं है जब केंद्र सरकार ने इस जटिल मुद्दे में मध्यस्थता की है। पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को विवाद का समाधान निकालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जल शक्ति मंत्रालय ने दोनों राज्यों के बीच संवाद को प्रोत्साहित कर संविधान की अनुसूची-7 के अंतर्गत ‘जल बंटवारा’ जैसे विषय को सहमति से सुलझाने की पहल की है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह वार्ता सफल होती है, तो यह एक मिसाल कायम कर सकती है कि अंतरराज्यीय जल विवादों को भी शांतिपूर्ण वार्ता और संवैधानिक दायरे में सुलझाया जा सकता है।

भारत के दो प्रमुख राज्यों—पंजाब और हरियाणा—के बीच दशकों से चला आ रहा सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद केवल जल बंटवारे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और संवैधानिक स्तर पर भी गहराई से महसूस किया जाता है। आइए इस विवाद के प्रमुख पहलुओं को विस्तार से समझते हैं:

SYL नहर परियोजना की नींव वर्ष 1981 में एक त्रिपक्षीय समझौते के साथ रखी गई थी, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों ने हस्ताक्षर किए थे। इसका उद्देश्य सतलुज नदी से यमुना बेसिन (मुख्यतः हरियाणा) तक पानी की आपूर्ति करना था, ताकि हरियाणा को उसकी न्यायोचित जल हिस्सेदारी मिल सके।

इस समझौते के तहत पंजाब को लगभग 3.5 MAF (मिलियन एकड़ फीट) पानी हरियाणा को देना था। इसके लिए नहर का निर्माण शुरू हुआ, लेकिन पंजाब में राजनीतिक और सामाजिक विरोध के कारण यह कार्य अधूरा रह गया।

हरियाणा का पक्ष:
हरियाणा का कहना है कि राज्य को अपने हिस्से का पानी नहीं मिल रहा है, जबकि उसकी कृषि अर्थव्यवस्था को इसकी सख्त जरूरत है। हरियाणा का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस जल हिस्सेदारी को मान्यता दी है और पंजाब को SYL नहर निर्माण पूरा करने के लिए कहा है। इसके बावजूद कार्य अब तक अधूरा है।

पंजाब का पक्ष:
पंजाब का दावा है कि राज्य के पास “अतिरिक्त जल उपलब्ध नहीं है”, और अगर मौजूदा संसाधनों को हरियाणा को दे दिया जाए, तो पंजाब के किसानों और नागरिकों को भारी जल संकट का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा, पंजाब में इस नहर का भारी राजनीतिक और सामाजिक विरोध है—जिसके कारण नहर निर्माण कई बार बाधित हुआ।

वर्षों से चले आ रहे इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने कई बार हस्तक्षेप किया है। नवंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय दी कि पंजाब द्वारा SYL नहर निर्माण को रोकना संविधान के विपरीत है। फिर भी राज्य सरकारों के बीच सहयोग की कमी के कारण कोर्ट के आदेशों का अब तक पूर्ण पालन नहीं हुआ है।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से भी मध्यस्थता की अपेक्षा की, जिसके तहत अब केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय पहल कर रहा है।

SYL विवाद केवल तकनीकी या जल वितरण का विषय नहीं रहा, बल्कि यह दोनों राज्यों में राजनीतिक भावनाओं और क्षेत्रीय अस्मिता से जुड़ चुका है।

इस प्रकार, यह विवाद अक्सर राजनीतिक बयानबाजी और क्षेत्रीय ध्रुवीकरण का केंद्र बन जाता है।

केंद्र सरकार इस पूरे मामले में एक संवैधानिक मध्यस्थ की भूमिका निभा रही है। जल शक्ति मंत्रालय द्वारा की जा रही बैठकें इस दिशा में एक सकारात्मक पहल हैं। केंद्र का उद्देश्य है कि इस विवाद को वार्ता और सहमति के माध्यम से सुलझाया जाए, जिससे राज्यों के बीच रिश्ते बेहतर हों और राष्ट्रीय हित भी सुरक्षित रहे।

हालिया बैठक, 9 जुलाई 2025 को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी. आर. पाटिल की अध्यक्षता में आयोजित की गई, जिसमें दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए। बैठक सौहार्द्रपूर्ण रही और सभी पक्षों ने अगली बैठक अगस्त 2025 में करने की सहमति जताई।

9 जुलाई 2025 को हुई बैठक इस लंबे विवाद में एक सकारात्मक मोड़ के रूप में देखी जा रही है।

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