
ईरान और वैश्विक शक्तियों के बीच परमाणु गतिविधियों को लेकर चल रहे लंबे गतिरोध ने एक नए और नाटकीय मोड़ ले लिया है। ईरानी राष्ट्रपति मसोउद पेज़ेशकियान ने एक ऐसे विधेयक पर हस्ताक्षर कर उसे कानून का रूप दे दिया है, जो संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ ईरान के सहयोग को औपचारिक रूप से स्थगित कर देता है।
इस कदम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बेहद कठोर और असाधारण कार्रवाई माना जा रहा है, जो न केवल पश्चिमी देशों बल्कि संपूर्ण वैश्विक परमाणु व्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन गया है।
क्या है पूरा मामला?
ईरानी संसद द्वारा पारित इस कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ईरान अब IAEA के निरीक्षकों को अपने प्रमुख परमाणु ठिकानों की नियमित जांच, कैमरा निगरानी, और समय-समय पर पारदर्शिता से जुड़ी जानकारी साझा करने जैसी व्यवस्थाओं को निलंबित करेगा।
यह कानून ऐसे समय में पारित हुआ है जब ईरान, इज़राइल और अमेरिका के बीच हाल ही में 12-दिवसीय सैन्य संघर्ष समाप्त हुआ है, जिसके दौरान अमेरिका और इज़राइल ने ईरान की कई परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया था।
ईरान का आरोप है कि इन सैन्य कार्रवाइयों के दौरान IAEA पूरी तरह मौन रही और एजेंसी ने न तो निंदा की और न ही हस्तक्षेप करने की कोई कोशिश की। इसी को आधार बनाकर ईरान ने IAEA पर “पक्षपात और निष्क्रियता” का आरोप लगाया।
विधेयक का पारित होना: संसद से राष्ट्रपति तक
इस विवादास्पद विधेयक को ईरानी संसद (Majlis) ने अभूतपूर्व समर्थन के साथ पारित किया।
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कुल 290 सीटों वाली संसद में उपस्थित 222 सदस्यों में से 221 ने समर्थन में मतदान किया।
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एक सांसद ने तटस्थ रहने का निर्णय लिया।
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कोई भी सदस्य विधेयक के खिलाफ नहीं गया।
इसके पश्चात ईरान के संवैधानिक निगरानी निकाय ‘गार्डियन काउंसिल’ ने भी इसे वैधता प्रदान की, जिसके बाद यह विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया गया।
2 जुलाई की शाम, राष्ट्रपति मसोउद पेज़ेशकियान ने विधेयक पर हस्ताक्षर कर इसे कानून का रूप दे दिया। इसके साथ ही ईरान का IAEA के साथ सहयोग तत्काल प्रभाव से स्थगित हो गया।
पृष्ठभूमि: कैसे भड़की यह स्थिति?
इस घटनाक्रम की शुरुआत 13 जून 2025 को हुई जब इज़राइल ने ईरान के नतांज, फोर्दो, और इस्फहान में स्थित सैन्य व परमाणु केंद्रों पर एयरस्ट्राइक की।
इसके जवाब में, ईरान ने इज़राइली ठिकानों पर मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया।
इस टकराव में हजारों नागरिकों और सैन्यकर्मियों की जान गई और ऊर्जा बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान हुआ।
22 जून को अमेरिका ने हस्तक्षेप करते हुए ईरान की मुख्य परमाणु सुविधाओं पर तीव्र जवाबी कार्रवाई की। इसमें विशेष रूप से फोर्दो यूरेनियम संवर्धन संयंत्र, इस्फहान में हेक्साफ्लोराइड केंद्र और नतांज के अंडरग्राउंड कंप्लेक्स को नुकसान पहुंचाया गया।
ईरान ने इन हमलों को “जघन्य आक्रामण” करार देते हुए कहा कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम से पीछे नहीं हटेगा और “किसी भी हस्तक्षेप को संप्रभुता का उल्लंघन” मानेगा।
24 जून को अमेरिकी मध्यस्थता से युद्धविराम लागू हुआ, परंतु तनाव की लपटें थमी नहींं।
IAEA की भूमिका पर सवाल
ईरान के शीर्ष अधिकारियों ने खुले तौर पर IAEA पर निष्क्रियता, पक्षपात और पश्चिमी देशों के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है।
ईरान का कहना है कि:
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IAEA ने अमेरिका और इज़राइल के हमलों की निंदा नहीं की।
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एजेंसी ने ईरान की संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया।
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IAEA ने युद्ध के दौरान न तो कोई बयान जारी किया और न ही कोई निरीक्षण रोकने की अनुशंसा की।
ईरानी संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के प्रमुख, हुसैन नकीज़ादेह ने कहा,
“IAEA अब एक तकनीकी संस्था नहीं, बल्कि एक राजनीतिक हथियार बन चुकी है। इसका मौन रहना ईरान के खिलाफ एक साजिश का संकेत है।”
IAEA की प्रतिक्रिया और वैश्विक चिंता
IAEA की ओर से अभी तक इस पर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं हुआ है, परंतु यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राष्ट्र से जुड़े कई देशों ने ईरान के इस फैसले को “गंभीर चिंता का विषय” बताया है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने एक बयान में कहा:
“IAEA का सहयोग वैश्विक परमाणु स्थायित्व की आधारशिला है। इसका निलंबन किसी भी क्षेत्रीय या वैश्विक हित में नहीं है।”
अमेरिका ने ईरान के इस फैसले को “अत्यधिक उत्तेजक और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक” बताया है।
इस कदम के संभावित परिणाम
ईरान के इस निर्णय के वैश्विक परमाणु सुरक्षा पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं:
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JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action) जैसी बहुपक्षीय परमाणु संधियों का भविष्य और भी अनिश्चित हो जाएगा।
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यूरोपीय राष्ट्र, विशेषकर फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन, ईरान पर नए प्रतिबंधों के पक्षधर हो सकते हैं।
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IAEA निरीक्षकों की अनुपस्थिति में ईरान अपने यूरेनियम संवर्धन को तेज़ कर सकता है, जिससे परमाणु हथियार निर्माण की संभावना बढ़ जाती है।
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ईरान-इस्राइल-अमेरिका त्रिकोण में तनाव की लहरें फिर से उठ सकती हैं।
राष्ट्रपति पेज़ेशकियान की रणनीति
राष्ट्रपति मसोउद पेज़ेशकियान, जिन्होंने मार्च 2025 में चुनाव जीतकर सत्ता संभाली थी, अब एक राष्ट्रवादी और असहिष्णु नीति की ओर झुकते नज़र आ रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भीतरी राजनीतिक दबाव और राष्ट्रवादी जनभावनाओं को संतुष्ट करने के लिए भी उठाया गया है।
तेहरान विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर डॉ. मेहदी राजावी के अनुसार:
“पेज़ेशकियान ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे वह जनता में ‘मजबूत नेता’ की छवि बना सकें और संसद व सेना दोनों को संतुष्ट कर सकें।”
आंतरिक प्रतिक्रिया: जनता और मीडिया की भूमिका
ईरान की स्थानीय मीडिया, विशेष रूप से मेहर न्यूज़, तसनीम, और प्रेस टीवी ने इस निर्णय को “स्वाभिमान की जीत” करार दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर इसे अमेरिका और इज़राइल के विरुद्ध प्रतिक्रिया की आवश्यकता के रूप में देखा जा रहा है।
तेहरान के कई हिस्सों में लोगों ने सड़कों पर निकलकर राष्ट्रपति के इस फैसले का समर्थन किया और “अमेरिका मुर्दाबाद” तथा “IAEA की दलाली बंद हो” जैसे नारे लगाए।
भविष्य की राह: वार्ता या टकराव?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ईरान का यह निर्णय स्थायी रहेगा या एक रणनीतिक दबाव निर्माण उपाय है। कई विश्लेषकों का मानना है कि ईरान यह दिखाना चाहता है कि वह अब कोई एकतरफा निरीक्षण या हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेगा।
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया और आर्थिक प्रतिबंधों का प्रभाव राष्ट्रपति पेज़ेशकियान को इस नीति पर पुनर्विचार के लिए विवश कर सकता है।
निष्कर्ष: परमाणु संतुलन पर मंडराता संकट
ईरान द्वारा IAEA के साथ सहयोग को निलंबित करना पूरे पश्चिम एशिया के परमाणु संतुलन के लिए एक गंभीर खतरा है। इससे न केवल ईरान-पश्चिम संबंध और बिगड़ सकते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार व्यवस्था भी संकट में आ सकती है।
अगर जल्द ही कोई कूटनीतिक समाधान नहीं निकला, तो यह कदम विश्व राजनीति में एक और लंबे और खतरनाक संघर्ष की नींव रख सकता है।