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सड़क दुर्घटना उत्तर प्रदेश की धरती पर फिर छाया मातम, प्रधानमंत्री मोदी ने जताया शोक, परिजनों को 2 लाख की सहायता

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में 5 जुलाई की सुबह एक दर्दनाक हादसा हुआ जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। एक बस और ट्रक की भिड़ंत में कई जिंदगियाँ हमेशा के लिए समाप्त हो गईं। इस हृदयविदारक घटना पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त किया है और प्रत्येक मृतक के परिजनों को 2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। यह सहायता राशि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (PMNRF) से दी जाएगी।

सुबह की भयावह शुरुआत

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सुबह लगभग 4:15 बजे एक निजी स्लीपर बस मुरादाबाद की ओर जा रही थी, जब वह रजपुरा थाना क्षेत्र के पास एक तेज रफ्तार ट्रक से टकरा गई। बस में लगभग 52 यात्री सवार थे, जिनमें से कई लोग नींद में थे। टक्कर इतनी जोरदार थी कि बस का अगला हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया।

प्रत्यक्षदर्शियों की आँखों देखी

स्थानीय निवासी बबलू यादव ने बताया, “हमने जोर की आवाज सुनी और तुरंत मौके पर पहुँचे। चारों तरफ चीख-पुकार मची थी। लोग बस में फँसे हुए थे। हमने मिलकर शीशे तोड़े और घायलों को बाहर निकाला।”

मृतकों और घायलों की स्थिति

अस्पतालों में भर्ती

घायलों को तत्काल संभल के जिला अस्पताल और मुरादाबाद मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। कुछ की हालत गंभीर बताई गई है। प्रशासन ने घायलों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने हेतु एयरलिफ्ट तक की संभावना पर विचार किया है।

पहचान की प्रक्रिया जारी

मृतकों की पहचान का कार्य जारी है। कई शव बुरी तरह क्षत-विक्षत हैं। परिजनों को डीएनए मिलान के लिए बुलाया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संवेदना

प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO India) ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा:

“उत्तर प्रदेश के संभल में हुई दुर्घटना में लोगों की मौत से बहुत दुख हुआ। इस हादसे में अपने प्रियजनों को खोने वालों के प्रति संवेदना। घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से प्रत्येक मृतक के परिजनों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 की सहायता राशि दी जाएगी।”

इस संवेदना संदेश ने पीड़ित परिवारों को थोड़ी राहत दी, जो इस कठिन समय में सरकारी सहयोग की अपेक्षा कर रहे थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी घटना पर दुख व्यक्त करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया कि राहत कार्यों में कोई कोताही न बरती जाए। मुख्यमंत्री ने संभल के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को मौके पर जाकर राहत व बचाव कार्यों की निगरानी करने के आदेश दिए।

त्वरित रेस्क्यू ऑपरेशन

संभल प्रशासन, पुलिस और एनडीआरएफ की टीमों ने मिलकर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। हादसे के दो घंटे के भीतर ही सभी घायलों को अस्पताल भेज दिया गया था।

फोरेंसिक जांच शुरू

हादसे की गंभीरता को देखते हुए फोरेंसिक टीम को बुलाया गया है, जो दुर्घटना के कारणों का वैज्ञानिक विश्लेषण करेगी।

 हादसों का सिलसिला

यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटना ने इतना बड़ा नुकसान किया हो। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं में 22,000 से अधिक लोगों की जान गई थी, जिनमें से 38% दोपहिया और 25% बस यात्रियों की थीं।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों का दौरा

संवेदनाएँ और आश्वासन

स्थानीय विधायक श्याम प्रताप सिंह ने जिला अस्पताल पहुँचकर घायलों की स्थिति जानी और उनके परिजनों को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। वहीं सांसद राकेश शर्मा ने कहा, “हम केंद्र और राज्य सरकार से विशेष राहत पैकेज की मांग करेंगे।”

 मौके की भयावहता

तस्वीर का वर्णन:
क्षतिग्रस्त बस का अगला हिस्सा पूरी तरह मरोड़ चुका है। आसपास खून से सना हुआ सामान और यात्रियों का बिखरा सामान पड़ा है। राहतकर्मी स्ट्रेचर पर घायलों को ले जा रहे हैं। पीछे पुलिस का बैरिकेड और एम्बुलेंस की लाल-नीली बत्तियाँ।

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (PMNRF) की स्थापना 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, सड़क दुर्घटनाओं, आतंकी घटनाओं आदि में मृतकों के परिजनों और घायलों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
 प्रत्येक मृतक को अधिकतम ₹2 लाख की सहायता
 प्रत्येक घायल को ₹50,000 तक
 ऑनलाइन आवेदन एवं सत्यापन के बाद सीधे बैंक खातों में भुगतान

मानवता की मिसाल

स्थानीय निवासियों का योगदान

स्थानीय युवाओं ने प्रशासन से पहले मौके पर पहुँचकर कई लोगों की जान बचाई। एक युवा राजू यादव ने एक 6 महीने के बच्चे को बस से निकाल कर अस्पताल पहुँचाया।

सामाजिक संगठनों की सक्रियता

‘जनकल्याण ट्रस्ट’ और ‘युवाशक्ति सेवा समिति’ ने अस्पतालों में रक्तदान शिविर लगाए और भोजन वितरण किया।


राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर संवेदनाओं की बाढ़

ये हैशटैग पूरे दिन ट्रेंड करते रहे। लाखों लोगों ने शोक संवेदना प्रकट की और सरकार से सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता देने की मांग की।

विशेषज्ञों की राय

डॉ. विवेक अग्रवाल (रोड सेफ्टी एक्सपर्ट):

“यह हादसा बताता है कि हमारे हाईवे आज भी असुरक्षित हैं। ट्रकों की ओवरस्पीडिंग और बसों की खराब मेंटेनेंस गंभीर चिंता का विषय हैं।”

डॉ. अलका मेहरा (मनोवैज्ञानिक):

“ऐसे हादसे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक आघात भी देते हैं। पीड़ितों और उनके परिजनों के लिए मानसिक परामर्श जरूरी है।”

सड़क सुरक्षा की जरूरत और चुनौतियाँ

सीसीटीवी निगरानी का अभाव – निगाहें न होने पर कैसे मिले सुधार?

वास्तविकता की तस्वीर

भारत के अधिकांश जिलों और राजमार्गों पर आज भी सीसीटीवी कैमरों की भारी कमी है। जहाँ कैमरे लगे हैं, वहाँ भी वे या तो खराब हैं, या उनका लाइव मॉनिटरिंग नहीं होता।

आँकड़ों में हालात

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अनुसार, भारत में कुल 1.4 लाख किमी राष्ट्रीय राजमार्गों में से सिर्फ 12% पर ही प्रभावी सीसीटीवी निगरानी है। शहरी क्षेत्रों में भी 50% से अधिक ट्रैफिक कैमरे निष्क्रिय हैं।

नतीजा क्या होता है?

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

राकेश सिन्हा (पूर्व IG ट्रैफिक, यूपी):
“सीसीटीवी केवल निगरानी नहीं, बल्कि दुर्घटनाओं का निवारण है। हर चौक, चौराहे और बाईपास पर इनकी अनिवार्यता होनी चाहिए।”

 ओवरलोडिंग और ओवरस्पीडिंग 

स्पीड लिमिट बस बोर्डों पर

देशभर में ट्रकों और बसों की ओवरस्पीडिंग और ओवरलोडिंग एक आम समस्या बन गई है। अधिकांश हाईवे पर स्पीड लिमिट लिखी होती है, लेकिन उस पर कोई अमल नहीं करता।

हकीकत 

दुष्परिणाम:

सरकारी लापरवाही

भारतीय परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 37% मामले ओवरस्पीडिंग के कारण हुए थे। जबकि ओवरलोडिंग के कारण सड़क धँसने और ब्रिज क्षति की घटनाएँ भी दर्ज हुईं।

 वाहनों की नियमित जांच का अभाव – कबाड़ भी सड़कों पर दौड़ रहे हैं

‘फिटनेस’ केवल कागजों में?

कानून कहता है कि हर व्यवसायिक वाहन को हर वर्ष फिटनेस जांच से गुजरना चाहिए। लेकिन जमीनी हकीकत अलग है—घूस, मिलीभगत और लापरवाही से बिना जांच किए ही फिटनेस प्रमाण पत्र मिल जाते हैं।

कैसे होती है लापरवाही?

परिणाम:

फील्ड रिपोर्ट

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हुई एक जांच में 67 में से 38 ट्रकों के ब्रेक ठीक नहीं पाए गए, फिर भी वे सभी सड़क पर दौड़ रहे थे।

 स्ट्रीट लाइटिंग का अभाव 

शहरी भारत भी अंधेरे में

रात के समय सड़कें सुरक्षित होनी चाहिए, लेकिन भारत के कई राज्य अभी भी स्ट्रीट लाइट लगाने को ‘अतिरिक्त खर्च’ मानते हैं। छोटे शहरों और गांवों में यह समस्या विकराल है।

नतीजे:

वास्तविक घटनाएँ

केंद्र और राज्य की जिम्मेदारी

विद्युत मंत्रालय और नगर निकायों के बीच समन्वय की कमी के कारण स्ट्रीट लाइटिंग की योजना अधर में लटक जाती है। बजट में प्रावधान होते हैं लेकिन निष्पादन नहीं।

 हर 4 मिनट में एक मौत

भारत में हर साल करीब 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं, यानी हर 4 मिनट में एक मौत। इन चार प्रमुख खामियों की अगर अनदेखी न होती, तो इनमें से हजारों मौतें रोकी जा सकती थीं।

सीसीटीवी निगरानी 

ओवरस्पीडिंग/ओवरलोडिंग नियंत्रण के लिए:

वाहन जांच में सुधार के लिए:

स्ट्रीट लाइटिंग के लिए:

LED आधारित स्मार्ट लाइटिंग सिस्टम

सौर ऊर्जा से चलने वाली लाइट

अंधेरे क्षेत्र चिन्हित कर “डार्क ज़ोन” योजना लागू करना

स्थानीय निकायों की जवाबदेही तय करना

भविष्य की दिशा सुधार की गुंजाइश

सरकार को चाहिए कि:

सामाजिक संवाद और जनसहभागिता

‘सड़क सुरक्षा सप्ताह’ को बढ़ावा

हर साल मनाए जाने वाले ‘सड़क सुरक्षा सप्ताह’ को और प्रभावी बनाया जाना चाहिए, जहाँ जागरूकता अभियान, ड्राइविंग टेस्ट, नुक्कड़ नाटक और हेलमेट वितरण हो।

स्वयंसेवकों की भूमिका

‘रक्षक दूत’ जैसे स्वयंसेवकों की तैनाती की जानी चाहिए, जो यात्रियों को सतर्क करें और दुर्घटनाओं की रोकथाम में भूमिका निभाएँ।

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