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श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती पर डाक विभाग ने जारी किया स्मारक डाक टिकट

संवाददाता : | 10.07.2025 | Mission Sindoor |

डाक विभाग ने बुधवार को भारत माता के एक सच्चे सपूत, राष्ट्र निर्माता और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी योगदानकर्ता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती के पावन अवसर पर एक विशेष स्मारक डाक टिकट जारी किया। राजधानी दिल्ली के प्रतिष्ठित सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में आयोजित इस गरिमामय समारोह का आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा किया गया, जिसमें भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, राष्ट्रभक्ति और संवैधानिक इतिहास का संगम देखने को मिला।

कार्यक्रम में भारत के डाक विभाग के महानिदेशक, संस्कृति मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारीगण, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कलाकार, प्रख्यात इतिहासकार, शिक्षाविद, और गणमान्य अतिथियों सहित हजारों नागरिकों ने भाग लिया। डॉ. मुखर्जी के जीवन, विचारधारा और उपलब्धियों को समर्पित इस आयोजन में एक स्मारक डाक टिकट, प्रथम दिवस आवरण और एक विस्तृत ब्रोशर का भी अनावरण किया गया, जो अब देशभर के डाक टिकट ब्यूरो और ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर उपलब्ध है।

इस स्मारक डाक टिकट का विमोचन केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह राष्ट्र के प्रति समर्पण और संकल्प की पुनः प्रतिज्ञा जैसा था। समारोह की शुरुआत एक भव्य शंखनाद और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन से हुई, जिसने वातावरण को राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत कर दिया। तत्पश्चात डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन और कार्यों पर आधारित एक विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन हुआ, जिसमें दुर्लभ छायाचित्र, दस्तावेज़, पत्राचार और ऐतिहासिक प्रमाण प्रदर्शित किए गए।

इस प्रदर्शनी में दर्शकों को उनके शिक्षा सुधार, औद्योगिक नीति, संविधान सभा में भूमिका और जम्मू-कश्मीर को लेकर उनके ऐतिहासिक रुख की झलक देखने को मिली। उनके द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ (वर्तमान भारतीय जनता पार्टी का पूर्ववर्ती रूप) की बुनियाद में निहित राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक गौरव के विचार भी विशेष रूप से रेखांकित किए गए।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और नाट्य प्रस्तुति

इस अवसर पर एक विशेष लघु वृत्तचित्र फिल्म भी प्रदर्शित की गई, जिसमें डॉ. मुखर्जी के प्रारंभिक जीवन, उच्च शिक्षा, कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति के रूप में उनकी भूमिका, और स्वतंत्र भारत में उनके मंत्री काल का वृत्तांत प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कलाकारों द्वारा “एक विचार की मशाल” नामक नाट्य प्रस्तुति हुई, जिसमें डॉ. मुखर्जी की वैचारिक स्पष्टता, साहसिक निर्णय और त्याग को प्रभावशाली रूप में मंचित किया गया।

यह नाटक उस क्षण पर विशेष रूप से केंद्रित था जब उन्होंने पंडित नेहरू की कश्मीर नीति से असहमति व्यक्त करते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे” का उद्घोष करते हुए जम्मू-कश्मीर की एकता के लिए बलिदान दिया। इस प्रस्तुति को दर्शकों से भावभीनी सराहना मिली।

भारतीय शिक्षा और संवैधानिक योगदान

डॉ. मुखर्जी न केवल एक विचारक और राजनेता थे, बल्कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने के प्रयासों में भी उनका योगदान अतुलनीय था। मात्र 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा उपकुलपति बने, जहाँ उन्होंने विज्ञान, तकनीकी शिक्षा और राष्ट्रीयता पर आधारित पाठ्यक्रमों की नींव रखी। उनके प्रयासों से विश्वविद्यालयों में भारतीय दृष्टिकोण और सांस्कृतिक जागरूकता को स्थान मिला।

संविधान सभा के सदस्य के रूप में उन्होंने समान नागरिक अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, और राष्ट्र की एकता के लिए सशक्त स्वर में अपने विचार रखे। उन्होंने हमेशा समावेशी विकास और राष्ट्रवाद के संतुलन को प्राथमिकता दी। डाक टिकट और ब्रोशर में उनके इन योगदानों को विशेष रूप से दर्शाया गया है।

डाक विभाग की पहल और डिज़ाइन का महत्व

डाक विभाग द्वारा जारी यह स्मारक टिकट डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बहुआयामी व्यक्तित्व का प्रतीक है। इसमें उनका चित्र पारंपरिक भारतीय शैली में अंकित है, जिसके पृष्ठभूमि में भारत का मानचित्र, संविधान की प्रस्तावना, और कश्मीर घाटी का दृश्य संयोजित किया गया है। यह डिज़ाइन डॉ. मुखर्जी की भारतीय एकता के प्रति प्रतिबद्धता और शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है।

टिकट के साथ-साथ प्रथम दिवस आवरण भी जारी किया गया, जिसमें “राष्ट्रवाद, शिक्षा और बलिदान” विषयवस्तु के साथ उनकी हस्तलिपि का छायाचित्र और उनके विचारों की झलक मौजूद है। ब्रोशर में उनके जीवन की कालक्रमानुसार जानकारी, उनके भाषणों से उद्धरण, और डाक टिकट के डिज़ाइन की प्रक्रिया को भी समाहित किया गया है।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण और स्मृति संरक्षण का प्रयास

संस्कृति मंत्रालय ने इस आयोजन को न केवल एक स्मृति समारोह तक सीमित रखा, बल्कि इसे भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक कदम बताया। मंत्रालय के सचिव ने अपने भाषण में कहा, “डॉ. मुखर्जी जैसे महान व्यक्तित्वों को स्मरण करना केवल अतीत को सम्मान देना नहीं है, यह वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा लेने और भविष्य निर्माण की दिशा तय करने का माध्यम भी है।”

कार्यक्रम के अंत में एक देशभक्ति गीत प्रस्तुति हुई, जिसमें डॉ. मुखर्जी के जीवन की घटनाओं को संगीतबद्ध किया गया था। दर्शकों के बीच भावनात्मक लहर दौड़ गई जब अंतिम पंक्ति में गाया गया — “जो देश के लिए मिट जाए, वो ही सच्चा नायक कहलाए।”

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी – एक विस्तृत दृष्टि में


डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को बंगाल के सांस्कृतिक और बौद्धिक केंद्र कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। वे एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद और अधिवक्ता सर आशुतोष मुखर्जी के सुपुत्र थे। एक समृद्ध सांस्कृतिक और शैक्षणिक वातावरण में पले-बढ़े डॉ. मुखर्जी ने बचपन से ही राष्ट्र और समाज के लिए कुछ बड़ा करने का संकल्प लिया।


वे प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र रहे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक (बी.ए.) और परास्नातक (एम.ए.) की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इसके पश्चात उन्होंने कानून की पढ़ाई की और एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की। उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड गए और वहाँ प्रतिष्ठित ‘लिंकन इन्स’ से बार-एट-लॉ की उपाधि प्राप्त की। उनकी शिक्षा ने उन्हें एक गहन विचारशील नेता और सक्षम प्रशासक के रूप में तैयार किया।

सबसे युवा उपकुलपति (कलकत्ता विश्वविद्यालय, 1934):
मात्र 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त किए गए। इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारतीय संस्कृति, विज्ञान, तकनीकी शिक्षा और मातृभाषा को बढ़ावा देने वाले पाठ्यक्रमों को प्राथमिकता दी। वे भारतीय शिक्षा प्रणाली में स्वदेशी चेतना और आत्मनिर्भरता के समर्थक थे।

संविधान सभा के सदस्य:
वे भारत की संविधान सभा के सदस्य रहे, जहाँ उन्होंने राष्ट्रवाद, समान नागरिक अधिकार, और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर स्पष्ट और निर्भीक विचार रखे। उनका दृष्टिकोण समावेशी राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक गौरव पर आधारित था।

स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग मंत्री:
भारत की स्वतंत्रता के बाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में वे पहले उद्योग मंत्री बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारत के औद्योगिक विकास के लिए ठोस नीति-निर्माण किया। सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों और देश की औद्योगिक आत्मनिर्भरता की नींव रखने में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा।

भारतीय जनसंघ के संस्थापक (1951):
कांग्रेस की नीतियों से मतभेद और देश की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। यह दल आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में विकसित हुआ। जनसंघ का उद्देश्य भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित राजनीति को स्थापित करना था।

जम्मू-कश्मीर की एकता के लिए बलिदान (23 जून 1953):
वे जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के विरोधी थे और ‘एक राष्ट्र, एक संविधान, एक प्रधान’ की नीति के पक्षधर थे। उन्होंने नारा दिया — “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।” 1953 में, बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर जाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया, और संदिग्ध परिस्थितियों में 23 जून को जेल में उनकी मृत्यु हो गई। यह बलिदान भारतीय एकता के लिए उनका सर्वोच्च योगदान था।

“एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।”
यह उद्घोष उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रतीक बन गया। यह नारा न केवल एक राजनीतिक विरोध का प्रतीक था, बल्कि भारत की संवैधानिक एकता और अखंडता के लिए दिया गया उनका दृढ़ प्रण था।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन त्याग, शिक्षा, नेतृत्व और राष्ट्रभक्ति की मिसाल है। वे उन विरले नेताओं में से थे जिनका प्रभाव न केवल उनके समय पर, बल्कि आने वाली पीढ़ियों पर भी गहरा पड़ा। स्मारक डाक टिकट के रूप में उन्हें दी गई यह श्रद्धांजलि, उनके विचारों को युगों तक जीवंत रखने का एक सार्थक प्रयास है।

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