भूमिका
शिक्षा प्रणाली किसी भी समाज की रीढ़ होती है, और भाषायी नीतियां शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत संवेदनशील व दूरगामी प्रभाव डालने वाले निर्णय होते हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा हाल ही में अपनाई गई त्रिभाषा नीति, जिसके तहत हिंदी को प्राथमिक कक्षाओं में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया गया था, अब सरकार द्वारा वापस ले ली गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की है कि त्रिभाषा नीति पर पुनर्विचार के लिए एक समिति गठित की जाएगी, जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध शिक्षाविद और सांसद डॉ. नरेंद्र जाधव करेंगे।
यह निर्णय आगामी मानसून सत्र के ठीक पहले आया है और इसके राजनीतिक, सामाजिक तथा शैक्षणिक निहितार्थों पर व्यापक चर्चा हो रही है। इस विस्तृत लेख में हम त्रिभाषा नीति की पृष्ठभूमि, सरकार द्वारा उठाए गए कदम, इस पर विभिन्न वर्गों की प्रतिक्रियाएं, राजनीतिक समीकरण, शिक्षा क्षेत्र में संभावित प्रभाव और भविष्य की दिशा पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे।
त्रिभाषा नीति की पृष्ठभूमि
भारत में त्रिभाषा फार्मूला पहली बार वर्ष 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तुत किया गया था। इसका उद्देश्य देश की भाषायी विविधता को ध्यान में रखते हुए, एक सामान्य भाषा शिक्षण ढांचा तैयार करना था। इस फार्मूले के अनुसार:
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पहली भाषा मातृभाषा/प्रादेशिक भाषा होती है।
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दूसरी भाषा हिंदी/अंग्रेज़ी या अन्य कोई भारतीय भाषा होती है।
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तीसरी भाषा हिंदी/अंग्रेज़ी या कोई अन्य भाषा हो सकती है, जो पहली दो भाषाओं से अलग हो।
महाराष्ट्र में अब तक मराठी भाषा को पहली भाषा और अंग्रेज़ी या हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहा है। हाल ही में सरकार ने हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में कक्षा 1 से 5 तक लागू करने का प्रस्ताव GR (Government Resolution) के माध्यम से दिया था।
सरकार के GRs और उनके प्रभाव
1. पहला GR – 16 अप्रैल 2024
इस GR के अंतर्गत यह निर्णय लिया गया कि राज्य के सभी प्राथमिक विद्यालयों (सरकारी, निजी और सहायता प्राप्त) में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में कक्षा 1 से 5 तक पढ़ाया जाएगा। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना और छात्रों को एक और व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा से परिचित कराना था।
2. दूसरा GR – 17 जून 2024
पहले आदेश पर विरोध होने के बाद, सरकार ने दूसरा GR जारी किया, जिसमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में वैकल्पिक बना दिया गया। इस GR में स्कूलों को यह छूट दी गई थी कि वे अपनी तीसरी भाषा चुनने के लिए स्वतंत्र होंगे – चाहे वह हिंदी हो या कोई अन्य।
दोनों GRs ने राज्य में शिक्षकों, अभिभावकों, शिक्षाविदों और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस को जन्म दिया।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की घोषणा
29 जून 2025 को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रेस वार्ता में यह घोषणा की कि दोनों GRs को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया है। उन्होंने कहा,
“हमारी सरकार शिक्षा को लेकर अत्यंत संवेदनशील है। विभिन्न वर्गों से मिली प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए हमने निर्णय लिया है कि त्रिभाषा नीति पर पुनर्विचार आवश्यक है।”
इसके साथ ही उन्होंने डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की घोषणा की, जो इस विषय पर व्यापक अध्ययन कर राज्य के शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
डॉ. नरेंद्र जाधव समिति: जिम्मेदारी और दिशा
डॉ. नरेंद्र जाधव एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद, अर्थशास्त्री और राज्यसभा सांसद हैं। उन्हें शिक्षा प्रणाली और सामाजिक न्याय से जुड़े विषयों पर विशेषज्ञता हासिल है। उनके नेतृत्व में बनने वाली समिति:
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विभिन्न राज्यों की त्रिभाषा नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन करेगी।
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छात्रों, शिक्षकों, शिक्षा बोर्डों, स्कूल प्रबंधन समितियों और सामाजिक संगठनों से परामर्श लेगी।
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मराठी भाषा की महत्ता बनाए रखते हुए भाषायी विविधता और समावेशन पर आधारित सिफारिशें देगी।
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केंद्र की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप राज्य की भाषा नीति का पुनः प्रारूप तैयार करेगी।
विरोध और समर्थन की प्रतिक्रिया
1. विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) ने सरकार पर ‘हिंदी थोपने’ का आरोप लगाया था। विपक्ष का तर्क था कि महाराष्ट्र की भाषायी पहचान के साथ यह हस्तक्षेप है।
“मराठी राज्य में मराठी सर्वोच्च है। बच्चों पर हिंदी थोपना सांस्कृतिक आक्रमण के समान है।” – जयंत पाटिल, एनसीपी नेता
2. शिक्षकों और संगठनों की प्रतिक्रिया
शिक्षक संघों ने नए विषय जोड़ने से पाठ्यक्रम में जटिलता और कार्यभार बढ़ने की आशंका जताई। कई संगठनों ने हिंदी को वैकल्पिक बनाए जाने का समर्थन किया लेकिन अनिवार्यता पर आपत्ति जताई।
3. अभिभावकों की चिंता
कुछ अभिभावकों ने इस नीति का स्वागत किया और कहा कि हिंदी जानना जरूरी है, वहीं ग्रामीण व मराठी-प्रमुख क्षेत्रों के अभिभावकों ने इसे अतिरिक्त बोझ बताया।
राजनीतिक दृष्टिकोण और समीकरण
महाराष्ट्र में त्रिभाषा नीति का मुद्दा अब शुद्ध शैक्षणिक विषय नहीं रह गया है, बल्कि यह राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है। इसे क्षेत्रीय अस्मिता, भाषा की अस्मिता और केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में देखा जा रहा है।
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भाजपा: हिंदी भाषा को जोड़ने के पीछे राष्ट्रभाषा के प्रसार का तर्क देती है।
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शिवसेना (शिंदे गुट): सत्ता में होते हुए इस पर खुलकर मत नहीं दे पा रही थी।
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उद्धव गुट और विपक्ष: इसे क्षेत्रीयता के खिलाफ बताया और इसे चुनावी मुद्दा भी बना लिया।
शिक्षा पर संभावित प्रभाव
त्रिभाषा नीति के लागू या रद्द होने के अनेक प्रभाव हो सकते हैं:
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छात्रों पर बोझ: कक्षा 1 से 5 के छात्रों के लिए तीन भाषाओं को सीखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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शिक्षकों की नियुक्ति: हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती।
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पाठ्यपुस्तक प्रकाशन: नए पाठ्यक्रम के अनुसार किताबें तैयार करनी पड़तीं।
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भाषायी संतुलन: मराठी और अंग्रेज़ी के बीच हिंदी का समावेश भाषायी संतुलन को प्रभावित कर सकता था।
भविष्य की संभावनाएं और राह
अब जब GRs को वापस ले लिया गया है और समिति बनाई जा रही है, तो यह अपेक्षा की जा रही है कि:
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समिति व्यापक संवाद के माध्यम से संतुलित नीति का प्रस्ताव देगी।
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मराठी को प्राथमिक स्थान देते हुए राष्ट्रभाषा और वैश्विक भाषा अंग्रेज़ी के बीच संतुलन साधा जाएगा।
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भाषा नीति को छात्रों की रुचि, मानसिक क्षमता और समावेशी शिक्षा के सिद्धांतों के अनुरूप ढाला जाएगा।
निष्कर्ष
महाराष्ट्र सरकार द्वारा त्रिभाषा नीति के GRs को वापस लेने का निर्णय न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह शिक्षा नीति निर्माण में सार्वजनिक सहभागिता का उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। इस फैसले से स्पष्ट है कि भाषा जैसे संवेदनशील विषयों पर निर्णय लेते समय जनभावनाओं, सांस्कृतिक विविधता और शैक्षणिक व्यावहारिकताओं को बराबर महत्व दिया जाना चाहिए।
अब देशभर की निगाहें डॉ. नरेंद्र जाधव समिति की रिपोर्ट पर टिकी रहेंगी। क्या वह एक संतुलित, समावेशी और व्यावहारिक भाषा नीति प्रस्तुत कर पाएगी? क्या यह नीति आने वाली पीढ़ियों के भाषायी भविष्य को समृद्ध करेगी या फिर एक और विवाद का कारण बनेगी? ये प्रश्न अभी बाकी हैं।
लेकिन इतना तय है – महाराष्ट्र में भाषा की लड़ाई सिर्फ लिपि की नहीं, अस्मिता की भी है।