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भारत में शुरू होगी एलन मस्क की स्टारलिंक इंटरनेट सेवा, स्पेस रेगुलेटर इन-स्पेस से मिली मंजूरी

संवाददाता: | 10.07.2025 | Mission Sindoor |

भारत के डिजिटल भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की सैटेलाइट इंटरनेट सेवा स्टारलिंक को भारत में कमर्शियल सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करने की अनुमति मिल गई है। यह मंजूरी भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) द्वारा बुधवार को दी गई, जो देश में निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष गतिविधियों को विनियमित करता है।

इन-स्पेस की वेबसाइट पर जारी ऑथराइजेशन लिस्ट के अनुसार, यह अनुमति मिलने के बाद अब स्टारलिंक के लिए भारत में परिचालन शुरू करने की राह लगभग साफ हो गई है। इसे अब केवल स्पेक्ट्रम आवंटन और ज़मीनी ढांचे की स्थापना से संबंधित औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी।

स्टारलिंक, जो पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में 6,750 से अधिक उपग्रहों का संचालन करता है, दुनिया की सबसे बड़ी उपग्रह इंटरनेट सेवा है। यह प्रणाली उन क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँचाने के लिए डिज़ाइन की गई है, जहाँ परंपरागत तार-आधारित कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है या उसकी गुणवत्ता बेहद खराब है। भारत जैसे विविध भूगोल वाले देश में, जहाँ पहाड़ी, रेगिस्तानी और दूरदराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती रही है, स्टारलिंक एक संभावित गेमचेंजर के रूप में देखा जा रहा है।

सरकार से स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया भी अंतिम चरण में है। दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने स्टारलिंक को ट्रायल स्पेक्ट्रम देने की तैयारी कर ली है, जिससे कंपनी अपनी सेवाओं के तकनीकी और सुरक्षा मानकों की पुष्टि कर सके। यह ट्रायल चरण पूर्ण होते ही, स्टारलिंक भारत में अपने वाणिज्यिक परिचालन की शुरुआत कर सकती है। इस पूरी प्रक्रिया में कुछ ही महीने लगने की संभावना है।

इससे पहले, इन-स्पेस ने स्टारलिंक को लेटर ऑफ इंटेंट (LOI) जारी किया था, जो यह दर्शाता है कि नियामक कंपनी की योजनाओं और प्रस्तावों से सैद्धांतिक रूप से सहमत है। अब औपचारिक मंजूरी मिलने के साथ, यह पहली बार होगा जब भारत में किसी विदेशी कंपनी को पूर्ण सैटेलाइट इंटरनेट सेवा के लिए अनुमति मिली है।

स्टारलिंक ने भारत में पहले ही कई वीसैट (VSAT) प्रदाताओं के साथ व्यावसायिक समझौते कर लिए हैं। वीसैट सेवा प्रदाता उन क्षेत्रों में उपग्रह आधारित संचार सेवाएं प्रदान करते हैं, जहाँ फाइबर या मोबाइल नेटवर्क मौजूद नहीं है। ये समझौते न केवल सेवाओं के वितरण को आसान बनाएंगे, बल्कि स्थानीय रोजगार और तकनीकी क्षमता को भी बढ़ावा देंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में लगभग 25 करोड़ लोग अभी भी इंटरनेट से वंचित हैं, और यह सेवा विशेष रूप से उत्तर-पूर्व, हिमालयी क्षेत्रों, छत्तीसगढ़, झारखंड और आंध्र के आदिवासी क्षेत्रों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती है।

तकनीकी और रणनीतिक दृष्टिकोण

स्टारलिंक का संचालन एक अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित है, जिसमें हजारों छोटे उपग्रह पृथ्वी की सतह से लगभग 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करते हैं। ये उपग्रह एक-दूसरे से लेज़र कम्युनिकेशन के ज़रिये जुड़े होते हैं, जिससे डेटा रूटिंग अत्यंत तेज़ और सटीक होती है। पारंपरिक जियोस्टेशनरी सैटेलाइट सिस्टम की तुलना में स्टारलिंक की लेटेंसी (response time) बहुत कम होती है — लगभग 25 से 40 मिलीसेकंड — जो हाई-स्पीड इंटरनेट के लिए आदर्श मानी जाती है।

स्पेसएक्स का दावा है कि स्टारलिंक सेवा से प्रति सेकंड 150 से 200 Mbps की गति प्राप्त की जा सकती है, जो भारत के औसत ब्रॉडबैंड स्पीड (75 Mbps) से कहीं अधिक है।

नीतिगत दृष्टिकोण और सरकारी दृष्टिकोण

केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीते सप्ताह संकेत दिया था कि स्टारलिंक की ओर से सभी आवश्यक सुरक्षा, तकनीकी और नियामक जांचें पूरी कर ली गई हैं। उन्होंने कहा, “हम भविष्य के लिए तैयार हैं। यदि कोई कंपनी भारत के डिजिटल विकास में भागीदारी करना चाहती है और सभी शर्तें पूरी करती है, तो हम उसका स्वागत करते हैं। स्टारलिंक को भी नियामकीय स्वीकृति इसी नीति के तहत दी गई है।”

भारत सरकार ने हाल ही में अपने स्पेस पॉलिसी 2023 में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने की बात कही थी। इस नीति के अंतर्गत, कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष एजेंसियों के संसाधनों, लॉन्च वाहनों और भू-सुविधाओं तक पहुँच दी जा रही है।

भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थिति और संभावनाएँ

भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या भले ही 85 करोड़ पार कर गई हो, लेकिन ग्रामीण भारत में डिजिटल विभाजन आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। केंद्र सरकार की डिजिटल इंडिया योजना के बावजूद, उत्तर भारत के पहाड़ी राज्य, सीमांत इलाके और आंतरिक जंगल क्षेत्र आज भी इंटरनेट से वंचित हैं।

स्टारलिंक जैसी सेवा उन क्षेत्रों के लिए लाभदायक हो सकती है जहाँ फाइबर केबल बिछाना महंगा या असंभव है। इसके अतिरिक्त, आपदा-प्रभावित क्षेत्रों में संचार बहाल करने, सीमाओं पर सुरक्षाबलों की इंटरनेट आवश्यकताओं, और सुदूर स्कूलों व अस्पतालों को कनेक्ट करने के लिए यह तकनीक क्रांतिकारी साबित हो सकती है।

वैश्विक उपस्थिति और अनुभव

स्टारलिंक की सेवाएं इस समय मंगोलिया, जापान, फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया, अजरबैजान, श्रीलंका, जॉर्डन और यमन जैसे देशों में पहले से संचालित हो रही हैं। इन देशों में विशेष रूप से ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता सिद्ध हुई है।

मोंटेनेग्रो, चिली और यूक्रेन जैसे देशों ने आपातकालीन परिस्थितियों में स्टारलिंक से संचार बनाए रखने में सफलता पाई है। यूक्रेन में युद्ध के दौरान स्टारलिंक ने महत्वपूर्ण सैन्य और नागरिक संचार सेवाएँ बहाल रखने में योगदान दिया।

स्टारलिंक – एक विस्तृत परिचय


स्टारलिंक परियोजना का संचालन विश्वप्रसिद्ध निजी अंतरिक्ष अन्वेषण कंपनी स्पेसएक्स द्वारा किया जाता है, जिसके संस्थापक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और अध्यक्ष हैं एलन मस्क। यह परियोजना उनकी दूरदृष्टि का परिणाम है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर हाई-स्पीड, लो-लेटेंसी इंटरनेट सेवा प्रदान करना है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ पारंपरिक ब्रॉडबैंड इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करना कठिन है।


स्टारलिंक परियोजना की नींव वर्ष 2015 में रखी गई थी, जब स्पेसएक्स ने पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में उपग्रहों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित करने की योजना की घोषणा की। इसके बाद, वर्ष 2020 में प्रारंभिक सेवाएं अमेरिका और कनाडा के कुछ हिस्सों में शुरू की गईं। धीरे-धीरे इसका विस्तार यूरोप, एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका तक हो चुका है।


वर्तमान में स्टारलिंक के पास पृथ्वी की निचली कक्षा में 6,750 से अधिक सक्रिय उपग्रह हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। स्पेसएक्स का लक्ष्य आने वाले वर्षों में 12,000 से अधिक उपग्रहों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित करना है, जिससे पूरी पृथ्वी पर बिना रुकावट इंटरनेट सेवा प्रदान की जा सके।


स्टारलिंक के उपग्रह पृथ्वी से लगभग 550 किलोमीटर की ऊँचाई पर परिक्रमा करते हैं। यह ऊँचाई पारंपरिक भू-स्थैतिक उपग्रहों (जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स) की तुलना में बहुत कम है, जिससे डेटा भेजने और प्राप्त करने की गति काफी तेज़ होती है और लेटेंसी न्यूनतम रहती है।


उपयोगकर्ताओं को स्टारलिंक की सेवाओं के माध्यम से औसतन 150 से 200 मेगाबाइट प्रति सेकंड (Mbps) तक की डाउनलोड गति प्राप्त होती है। यह गति ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से उपलब्ध हो सकती है, बशर्ते स्पष्ट आकाश दृश्यता हो।


लेटेंसी यानी डेटा के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में लगने वाला समय, स्टारलिंक की सबसे बड़ी विशेषता है। इसका नेटवर्क 25 से 40 मिलीसेकंड के बीच की कम लेटेंसी प्रदान करता है, जो वीडियो कॉल, ऑनलाइन गेमिंग और लाइव स्ट्रीमिंग जैसी गतिविधियों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।


आज की तारीख में स्टारलिंक की सेवाएं 70 से अधिक देशों में उपलब्ध हैं। इसमें अमेरिका, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, फिलीपींस, मंगोलिया, श्रीलंका, यूक्रेन, चिली और यमन जैसे देश शामिल हैं। इसके अलावा, कई देशों में इसकी सेवाएं आपातकालीन संचार साधन के रूप में भी इस्तेमाल की गई हैं।


भारत में स्टारलिंक को IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र) से औपचारिक मंजूरी प्राप्त हो चुकी है। अब यह परियोजना ट्रायल स्पेक्ट्रम प्राप्त करने की प्रक्रिया में है, जिसके पूर्ण होते ही कंपनी भारत में अपने उपग्रह इंटरनेट सेवा का व्यावसायिक संचालन प्रारंभ कर सकती है। इसके लिए स्पेक्ट्रम आवंटन और जमीनी ढांचा निर्माण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है।


स्टारलिंक का मुख्य उद्देश्य भारत के दूरदराज, ग्रामीण, सीमावर्ती, और दुर्गम क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच को सुनिश्चित करना है। विशेषकर उन इलाकों में जहाँ फाइबर केबल या मोबाइल नेटवर्क की पहुंच सीमित है, वहां स्टारलिंक एक प्रभावशाली डिजिटल समाधान बनकर उभर सकता है। इसके अतिरिक्त, आपदा के समय संचार बनाए रखने और सेना, स्वास्थ्य, शिक्षा व प्रशासन के क्षेत्रों में डिजिटल समावेशिता बढ़ाने में भी इसकी बड़ी भूमिका हो सकती है।

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