
देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI – Indian Veterinary Research Institute), बरेली के दीक्षांत समारोह में भाग लेते हुए एक ऐसा उद्बोधन दिया जिसने पशु चिकित्सा विज्ञान, सांस्कृतिक मूल्यों और सतत विकास के संबंध में एक नई दृष्टि प्रदान की। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध स्तर के छात्रों को संबोधित करते हुए वैज्ञानिक सोच, करुणा, तकनीकी नवाचार, स्वदेशी समाधानों और सेवा-भावना पर आधारित एक समावेशी पशु चिकित्सा प्रणाली की आवश्यकता को रेखांकित किया।
यह समारोह मात्र एक शैक्षणिक उत्सव नहीं था, बल्कि यह उस वैचारिक यात्रा का प्रतीक बन गया जिसमें विज्ञान, संस्कृति और संवेदना का एक अनुपम संगम प्रस्तुत हुआ।
संवेदनशीलता का मूल: ‘ईशावास्यम् इदं सर्वम्’ का दर्शन
राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने उद्बोधन की शुरुआत वेदों से ली गई प्रसिद्ध पंक्ति ‘ईशावास्यम् इदं सर्वम्’ से की, जिसका आशय है — “यह सारा जगत ईश्वर से व्याप्त है।” उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ें इस विश्वास में निहित हैं कि मानव, पशु, पक्षी, वृक्ष, जल, वायु और संपूर्ण प्रकृति एक अभिन्न इकाई हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह दृष्टिकोण प्रतीकात्मक नहीं बल्कि अत्यंत व्यावहारिक है, जो आज के विज्ञान से भी प्रमाणित होता जा रहा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे भारतीय पौराणिक कथाओं में पशुओं को देवताओं का वाहन माना गया — शिव के साथ नंदी, विष्णु के साथ गरुड़, गणेश के साथ मुषक। यह न केवल धार्मिक मान्यता थी, बल्कि पारिस्थितिकी के साथ सह-अस्तित्व का गहरा बोध भी दर्शाती है।
राष्ट्रपति ने कहा,
“हमारे पूर्वजों का पशु-पक्षियों से संवाद प्रतीक नहीं था, बल्कि यह एक जीवंत अनुभूति थी। आज के वैज्ञानिक युग में भी हम उस चेतना की वैज्ञानिक पुष्टि पा रहे हैं।”
वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण की अनिवार्यता
राष्ट्रपति मुर्मु ने बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और मानवीय लालच के कारण विलुप्त होती वन्य प्रजातियों और जैव विविधता पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यदि जैविक विविधता नष्ट हुई तो उसका प्रतिकूल प्रभाव केवल पर्यावरण पर नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के अस्तित्व पर भी पड़ेगा।
उन्होंने आगे कहा,
“जिन प्रजातियों के साथ हम हज़ारों वर्षों से सह-अस्तित्व में रहे, वे अब संकट में हैं। यह चेतावनी है कि यदि हमने जागरूकता नहीं दिखाई तो यह संकट अपरिवर्तनीय आपदा में बदल सकता है।”
उन्होंने शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं से आग्रह किया कि वे वन्यजीव संरक्षण, जलवायु संतुलन और सतत विकास की दिशा में बहुस्तरीय, अंतर्विभागीय प्रयास करें।
कोविड महामारी और प्रकृति का उत्तर
राष्ट्रपति ने कोविड-19 महामारी को केवल एक स्वास्थ्य संकट न मानते हुए इसे मानवता के लिए प्रकृति की चेतावनी बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि महामारी ने यह सिखाया कि मनुष्य प्रकृति से अलग नहीं, बल्कि उसका अंग है।
उन्होंने कहा,
“कोरोना काल ने यह स्पष्ट किया कि अत्यधिक उपभोग और प्रकृति से छेड़छाड़ दीर्घकालिक नहीं हो सकती। हमें प्राकृतिक सीमाओं के भीतर रहकर विकास का मार्ग चुनना होगा।”
‘वन हेल्थ’ की अवधारणा: समन्वित स्वास्थ्य दृष्टिकोण की आवश्यकता
अपने भाषण में राष्ट्रपति ने ‘वन हेल्थ’ की अवधारणा पर विशेष बल दिया। यह विचार मानव, पशु और पारिस्थितिकी के स्वास्थ्य को एक-दूसरे से जुड़ा मानता है। हाल के वर्षों में पशुओं से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों — जैसे बर्ड फ्लू, निपाह, कोविड आदि — ने इस सिद्धांत की प्रासंगिकता को और अधिक पुष्ट किया है।
राष्ट्रपति ने कहा,
“हमें चिकित्सकों, पशु चिकित्सकों, वनस्पति वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों का एक साझा मंच तैयार करना होगा जो समन्वित दृष्टिकोण से बीमारियों की पहचान, रोकथाम और नियंत्रण सुनिश्चित करे।”
उन्होंने IVRI की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संस्थान को जूनोटिक बीमारियों के शोध और समाधान के क्षेत्र में अग्रणी बनना चाहिए।
तकनीक से संवेदना तक: पशु चिकित्सा में नवाचार का युग
राष्ट्रपति मुर्मु ने आधुनिक तकनीकों जैसे जीनोम एडिटिंग, एआई, टेलीमेडिसिन, बायोइन्फॉर्मेटिक्स आदि के पशु चिकित्सा में प्रयोग को प्रशंसनीय बताया। उन्होंने कहा कि भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, इन तकनीकों से पशुपालकों को बड़ी राहत मिल सकती है।
“डिजिटल पशु स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म, टेली-वेट सेवाएँ और मोबाइल क्लिनिक ग्रामीण भारत की आवश्यकताओं के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।”
इसके साथ ही उन्होंने स्वदेशी और कम लागत वाली वैकल्पिक दवाओं की खोज पर बल दिया, जो पशुओं, मानव और पर्यावरण—तीनों के लिए सुरक्षित हों।
स्वदेशी नवाचार और स्थानीय समाधान पर ज़ोर
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की विविध भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियाँ पशु चिकित्सा की चुनौतियों को अनूठा बनाती हैं। ऐसे में, अनुसंधान और समाधान भी स्थानीय और व्यवहारिक होने चाहिए।
“हमें देशज ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय स्थापित करना होगा। केवल पश्चिमी मॉडल अपनाने से समाधान नहीं मिलेगा।”
उन्होंने आईवीआरआई जैसे संस्थानों को ‘भारतीय संदर्भ में वैश्विक नवाचार’ की ओर अग्रसर होने का आह्वान किया।
छात्रों से संवाद: सेवा और संवेदना का पथ
दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रपति ने पशु चिकित्सा के छात्रों से सीधे संवाद किया। उन्होंने कहा कि पशु चिकित्सा केवल एक पेशा नहीं बल्कि एक सेवा भाव है। उन्होंने छात्रों से अपेक्षा की कि वे बेजुबान प्राणियों की सेवा को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें।
“जब भी आप दुविधा में हों, तो उस पशु की आँखों में झाँकें जिसकी ज़िम्मेदारी आपके हाथों में है। आपको अपनी राह दिख जाएगी।”
उद्यमिता और स्टार्ट-अप की दिशा में बढ़ते कदम
राष्ट्रपति ने छात्रों को प्रेरित किया कि वे केवल पारंपरिक सरकारी या निजी नौकरियों पर निर्भर न रहें, बल्कि पशु चिकित्सा, डेयरी विज्ञान, वैक्सीन निर्माण, जैविक फीड टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में नवाचार करें और स्टार्ट-अप के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ें।
“आप न केवल अपने लिए बल्कि लाखों ग्रामीण पशुपालकों के लिए भी रोज़गार के अवसर उत्पन्न कर सकते हैं। इससे आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना साकार होगी।”
दीक्षांत समारोह की झलकियाँ
इस अवसर पर सैकड़ों छात्रों को डिग्रियाँ और प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए। समारोह में कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के प्रतिनिधि, देशभर के वैज्ञानिक, शिक्षाविद् और छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।
IVRI के निदेशक डॉ. अशोक कुमार ने राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए कहा,
“हमारा संस्थान विज्ञान और सेवा के माध्यम से पशु कल्याण को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है। हम राष्ट्रीय विकास में भूमिका निभाने को प्रतिबद्ध हैं।”
समावेशी पशु चिकित्सा प्रणाली की ओर भारत
राष्ट्रपति के संबोधन ने यह स्पष्ट किया कि आने वाला युग ऐसी पशु चिकित्सा प्रणाली का है जो केवल उपचार पर आधारित न हो, बल्कि सतत विकास, रोकथाम, संवेदनशीलता और नवाचार के स्तंभों पर खड़ी हो। उन्होंने यह भी कहा कि पशु चिकित्सा विज्ञान को समाज के प्रत्येक स्तर पर सम्मान मिलना चाहिए और इसे नीति निर्माण में अधिक महत्व दिया जाना चाहिए।
निष्कर्ष: विज्ञान, संस्कृति और करुणा का त्रिवेणी संगम
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का यह संबोधन न केवल छात्रों बल्कि वैज्ञानिक समुदाय, नीति निर्माताओं और आम नागरिकों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत रहा। उन्होंने विज्ञान की शक्ति को पहचाना, संस्कृति की गहराई को समझाया और करुणा को मानवता की पहचान बताया।
आज जब विश्व पर्यावरणीय संकट, स्वास्थ्य आपदाओं और पशु कल्याण की चुनौतियों से जूझ रहा है, तब भारत को एक समन्वित, संवेदनशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर न केवल अपने लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करना है।