संवाददाता: Mission Sindoor| 10.07.2025 |
बिहार विधानसभा चुनाव के पूर्व चरण की तैयारियों के बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकता से जुड़ी बहस को पुनर्जीवित कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के कई सीमावर्ती और मुस्लिम बहुल जिलों में आधार सैचुरेशन (Aadhaar Saturation) दर 120% से भी अधिक दर्ज की गई है। यह आंकड़े न केवल प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि यह संदेह भी पैदा करते हैं कि कहीं इन क्षेत्रों में अवैध घुसपैठियों को पहचान दस्तावेज दिए तो नहीं जा रहे?
सबसे चौंकाने वाला मामला बिहार के किशनगंज जिले का है, जहां मुस्लिम आबादी लगभग 68% है, लेकिन आधार सैचुरेशन 126% तक पहुँच चुका है। इसका सीधा अर्थ यह है कि हर 100 नागरिकों पर 126 आधार कार्ड जारी हो चुके हैं। यही स्थिति अन्य सीमावर्ती जिलों जैसे कटिहार (44% मुस्लिम आबादी, 123%), अररिया (43%, 123%) और पूर्णिया (38%, 121%) में भी देखने को मिली है।
आधार सैचुरेशन दर का तात्पर्य है – किसी जिले की कुल अनुमानित जनसंख्या की तुलना में कितने प्रतिशत आधार कार्ड जारी किए गए हैं। यह आंकड़ा सामान्यतः 100% के करीब होना चाहिए, लेकिन जब यह 100% से ऊपर निकलता है, तो यह प्रशासनिक विसंगतियों या फर्जीवाड़े की ओर संकेत करता है।
126% सैचुरेशन का अर्थ यह नहीं कि जनसंख्या बढ़ गई है, बल्कि यह दर्शाता है कि किसी व्यक्ति के नाम से दो आधार कार्ड बने हैं, या फिर असमर्थित दस्तावेजों के आधार पर अवैध नागरिकों को भी आधार नंबर मिल गया है। जब यह विसंगति सीमावर्ती और मुस्लिम बहुल इलाकों में केंद्रित हो जाए, तो यह संदेह और गहराता है।
बिहार के उत्तर-पूर्वी जिलों की भौगोलिक स्थिति अत्यंत संवेदनशील मानी जाती है। इन जिलों की सीमाएं सीधे पश्चिम बंगाल और नेपाल से जुड़ी हुई हैं, वहीं बांग्लादेश से सटी सीमाओं के जरिए अवैध घुसपैठ की आशंकाएं पहले से ही जताई जाती रही हैं। इस संदर्भ में इन जिलों में सामान्य जनसंख्या से अधिक आधार कार्डों का पंजीकरण चिंताजनक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी भी विदेशी नागरिक को स्थानीय दस्तावेजों के माध्यम से आधार मिल जाता है, तो वह न केवल सरकारी योजनाओं का लाभार्थी बन सकता है, बल्कि मतदाता सूची में भी शामिल हो सकता है। इससे लोकतंत्र की नींव पर प्रत्यक्ष आघात हो सकता है।
आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह आंकड़े चुनावी पारदर्शिता को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े करते हैं। यदि फर्जी आधार के ज़रिए मतदाता सूची में फर्जी नाम जुड़ते हैं, तो चुनावों के निष्पक्ष होने पर संदेह स्वाभाविक है।
चुनाव आयोग पहले ही मतदाता पहचान को आधार से जोड़ने की पहल कर चुका है, लेकिन यह डेटा बताता है कि यह प्रक्रिया कितनी जोखिमपूर्ण हो सकती है यदि आधार स्वयं ही संदिग्ध हो।
एक वरिष्ठ पूर्व चुनाव अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “यदि एक क्षेत्र में आबादी से अधिक आधार कार्ड हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक चूक है, बल्कि जानबूझकर की गई साजिश की ओर भी इशारा करता है।”
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के नियमों के अनुसार आधार के लिए किसी सरकारी दस्तावेज की आवश्यकता होती है—जैसे राशन कार्ड, वोटर आईडी, बिजली बिल या फिर जन्म प्रमाणपत्र।
तो फिर सवाल उठता है कि अवैध रूप से भारत में आए किसी व्यक्ति के पास ये दस्तावेज कैसे उपलब्ध हुए? क्या इसमें स्थानीय स्तर पर अधिकारियों की मिलीभगत है? या फिर किसी संगठित नेटवर्क के तहत यह काम हो रहा है?
जानकारों का मानना है कि घुसपैठ और पहचान पत्रों का दुरुपयोग एक बड़ा संगठित अपराध बन चुका है, जो न केवल सीमाओं की सुरक्षा, बल्कि सरकारी योजनाओं के वित्तीय संसाधनों पर भी बोझ डाल रहा है।
वामपंथी और विपक्षी दल बार-बार यह मांग करते रहे हैं कि आधार को नागरिकता का प्रमाण माना जाए। लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है।
यदि आधार ही नागरिकता का प्रमाण बन गया, तो फर्जी तरीके से बने कार्ड वाले लोग भी कानूनन भारत के नागरिक माने जाएंगे। इससे न केवल भारत की जनसांख्यिकी प्रभावित होगी, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी चुनौती बढ़ेगी।
बिहार में आधार डेटा को लेकर उभरी चिंताओं के बाद अब पश्चिम बंगाल की स्थिति पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। ममता बनर्जी सरकार पहले ही एनआरसी और सीएए का विरोध कर रही है, और इस स्थिति में यदि बंगाल के सीमावर्ती जिलों में भी इसी तरह के आंकड़े सामने आए, तो यह एक राष्ट्रीय संकट का रूप ले सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बिहार और बंगाल के सीमावर्ती जिले समान जनसांख्यिकीय और भौगोलिक विशेषताओं को साझा करते हैं, और दोनों राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठ के पुराने संदिग्ध मार्ग मौजूद हैं।
आधार सैचुरेशन वह आँकड़ा है जो बताता है कि किसी क्षेत्र की कुल अनुमानित जनसंख्या के अनुपात में कितने आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी जिले की जनसंख्या 10 लाख है और वहां 9.5 लाख आधार बनाए गए हैं, तो सैचुरेशन 95% हुआ। सामान्यतः यह दर 95% से 100% के बीच होनी चाहिए। यह दर्शाता है कि लगभग सभी निवासी आधार से जुड़ चुके हैं।
लेकिन जब यह दर 100% से अधिक हो जाती है, तो यह अस्वाभाविक और चिंताजनक होता है, क्योंकि इसका सीधा संकेत है कि वहां की जनसंख्या से अधिक आधार कार्ड बनाए गए हैं – यानी या तो एक व्यक्ति के नाम पर दो या अधिक कार्ड हैं, या फर्जी पहचान वाले व्यक्तियों को भी कार्ड जारी किए गए हैं।
किसी जिले में आधार सैचुरेशन दर का 100% से ऊपर जाना एक व्यवस्थागत दोष की ओर इशारा करता है। यह कई तरह की गंभीर आशंकाओं को जन्म देता है:
डुप्लिकेट रजिस्ट्रेशन: एक ही व्यक्ति के नाम पर कई आधार कार्ड बन जाना।
फर्जी पहचान पत्र: बिना वैध दस्तावेजों के, बाहरी या अवैध नागरिकों को भी आधार का निर्गमन।
वास्तविक जनसंख्या की तुलना में कागज़ी जनसंख्या का बढ़ना, जो सरकारी संसाधनों और योजनाओं पर अनुचित दबाव डालता है।
यह स्थिति विशेष रूप से उन क्षेत्रों में और भी संवेदनशील मानी जाती है जो सीमावर्ती, मुस्लिम बहुल, और घुसपैठ के लिए संदिग्ध मार्गों से जुड़े हैं।
हालिया आंकड़ों के अनुसार, बिहार के कुछ सीमावर्ती जिलों में आधार सैचुरेशन 120% से भी अधिक पहुँच गया है। यह आंकड़े न केवल अप्रत्याशित हैं, बल्कि गंभीर प्रशासनिक और सुरक्षा प्रश्नों को जन्म देते हैं:
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किशनगंज:
मुस्लिम आबादी – 68%
आधार सैचुरेशन – 126% -
कटिहार:
मुस्लिम आबादी – 44%
आधार सैचुरेशन – 123% -
अररिया:
मुस्लिम आबादी – 43%
आधार सैचुरेशन – 123% -
पूर्णिया:
मुस्लिम आबादी – 38%
आधार सैचुरेशन – 121%
इन जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ की पहले से जताई जाती रही आशंकाएं अब और भी ठोस प्रतीत होने लगी हैं।
अवैध घुसपैठियों को भारतीय पहचान मिलना:
एक बार आधार मिल गया तो बैंक खाता, मोबाइल कनेक्शन, राशन कार्ड, यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र बनाना आसान हो जाता है। यह एक राष्ट्रविरोधी गतिविधि को कानूनी स्वरूप दे सकता है।
मतदाता सूची में फर्जी नाम जुड़ना:
फर्जी आधार कार्ड का प्रयोग कर चुनावी प्रक्रिया में अनधिकृत हस्तक्षेप किया जा सकता है, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है।
सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग:
प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, राशन, बीमा—ये सभी योजनाएं आधार से जुड़ी हैं। अवैध लाभार्थी वास्तविक जरूरतमंदों का हक छीन सकते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा:
सीमा पार से घुसपैठ कर देश में आ बसे किसी व्यक्ति को यदि आधार प्राप्त हो गया, तो वह लंबे समय तक सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से बाहर रह सकता है और आतंकी नेटवर्क से जुड़ सकता है।
दस्तावेजों की दोबारा सत्यापन प्रक्रिया:
जिन जिलों में सैचुरेशन दर 100% से अधिक है, वहां आधार कार्डों की दोबारा जांच की जानी चाहिए। फ़र्ज़ी या संदेहास्पद कार्डों को तत्काल रद्द किया जाए।
सीमावर्ती जिलों में विशेष ऑडिट और निगरानी:
गृह मंत्रालय, UIDAI और राज्य सरकार मिलकर इन संवेदनशील जिलों में आधार नामांकन केंद्रों की स्वतंत्र ऑडिट व्यवस्था लागू करें। आवश्यकता हो तो आधार पंजीकरण अस्थायी रूप से रोका जाए।
चुनाव आयोग द्वारा आधार-मतदाता लिंक की समीक्षा:
चुनावी पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि मतदाता सूची को आधार से जोड़ने से पहले इसकी शुद्धता की दोबारा पुष्टि हो। कहीं ऐसा न हो कि फर्जी आधार वालों को वोट देने का अधिकार मिल जाए।
केंद्र-राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय:
यह केवल तकनीकी या प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रहित का मामला है। इसलिए केंद्र और राज्य दोनों को मिलकर समन्वय स्थापित करते हुए कार्रवाई करनी चाहिए।