प्रस्तावना: एक लंबे इंतजार का समापन
पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद, अंततः वह क्षण आ ही गया जिसका बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था — कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 का शुभारंभ हो गया है। यह यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, आत्मिक अनुशासन और धैर्य की पराकाष्ठा का प्रतीक है। वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित हुई यह यात्रा अब फिर से शुरू हो रही है और हजारों श्रद्धालुओं के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है।
कैलाश मानसरोवर: अध्यात्म का परम धाम
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का महत्व केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है। यह स्थल हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन पंथियों के लिए पवित्रतम स्थलों में गिना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास है, वहीं जैन धर्म में यह तीर्थंकर ऋषभदेव की निर्वाण भूमि मानी जाती है। बौद्ध धर्म के अनुसार यह स्थान बौद्ध अवतार चक्रसंवर का निवास है। वहीं, तिब्बती बोन धर्म में भी इसे पवित्र पर्वत कहा गया है।
कोविड के कारण रुकी थी यात्रा
कैलाश मानसरोवर यात्रा को 2020 में स्थगित कर दिया गया था। इसका मुख्य कारण था वैश्विक कोविड महामारी। इस समय जब अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं बंद थीं और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएं सीमित थीं, भारत सरकार ने यात्रा को रोकने का निर्णय लिया था। तब से लगातार चार वर्षों तक यह यात्रा नहीं हो सकी थी।
अब वर्ष 2025 में परिस्थितियां सामान्य होने और सुरक्षा उपायों की सुनिश्चितता के बाद यह यात्रा पुनः प्रारंभ हुई है।
दो मार्गों से हो रही यात्रा: लिपुलेख और नाथू ला
इस वर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा दो प्रमुख मार्गों से संचालित हो रही है:
-
उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से (Lipulekh Pass Route):
-
यह मार्ग पारंपरिक और प्राचीन रूट माना जाता है।
-
यात्रा की शुरुआत पिथौरागढ़ से होती है और इसमें 18-20 दिनों का समय लगता है।
-
इसमें कठिन ट्रेकिंग शामिल है, जिसे साहसिक तीर्थयात्रियों द्वारा पसंद किया जाता है।
-
-
सिक्किम के नाथू ला दर्रे से (Nathula Pass Route):
-
यह मार्ग तुलनात्मक रूप से नया और सुविधाजनक है।
-
इसमें सड़क मार्ग और वाहन की सहायता से अधिकतर दूरी तय की जाती है।
-
यह मार्ग वरिष्ठ नागरिकों और अस्वस्थ यात्रियों के लिए उपयुक्त माना जाता है।
-
विदेश मंत्रालय की भूमिका
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा इस यात्रा का समन्वय किया जाता है। मंत्रालय ने वर्ष 2025 के लिए यात्रियों की चयन प्रक्रिया, स्वास्थ्य जांच, यात्रा तिथियां, मार्ग निर्धारण और चीन सरकार से अनुमति जैसे सभी महत्वपूर्ण पहलुओं की देखरेख की है।
इस वर्ष यात्रा जून, जुलाई और अगस्त के तीन महीनों में विभाजित चरणों में आयोजित की जा रही है। प्रत्येक चरण में एक निर्धारित संख्या में तीर्थयात्री भाग लेंगे।
सुरक्षा और बुनियादी ढांचे की तैयारियां
इस बार यात्रा को पहले से अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं:
-
सिक्किम सरकार ने नाथू ला मार्ग पर अनेक acclimatisation centers (अनुकूलन केंद्र) बनाए हैं, ताकि तीर्थयात्री उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाने से पहले अपने शरीर को अभ्यस्त कर सकें।
-
उत्तराखंड सरकार ने पिथौरागढ़, धारचूला और गुंजी जैसे क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर, मोबाइल चिकित्सा इकाइयां, और आपातकालीन हेलीकॉप्टर सेवा की व्यवस्था की है।
-
यात्रियों के लिए उच्च कोटि की बीमा योजना, जीपीएस ट्रैकिंग उपकरण, और संचार सुविधा की व्यवस्था भी की गई है।
चयन प्रक्रिया और मेडिकल फिटनेस
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए आवेदन विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर ऑनलाइन लिए गए। इसके लिए नागरिकता, आयु (18 से 70 वर्ष तक), पासपोर्ट की वैधता और स्वास्थ्य की स्थिति जैसे मापदंड निर्धारित किए गए थे।
यात्रा से पूर्व प्रत्येक तीर्थयात्री को कठोर चिकित्सा परीक्षण से गुजरना होता है, जिसमें विशेष रूप से हाई एल्टीट्यूड फिटनेस टेस्ट आवश्यक होता है। यदि कोई व्यक्ति फिट नहीं पाया जाता है, तो उसकी यात्रा रद्द कर दी जाती है।
यात्रा का कार्यक्रम
हर बैच का यात्रा कार्यक्रम लगभग 22-26 दिनों का होता है। इसमें शामिल हैं:
-
दिल्ली में एकत्रिकरण और मूलभूत प्रशिक्षण
-
स्वास्थ्य परीक्षण और मेडिकल क्लियरेंस
-
मार्ग के अनुसार उत्तराखंड/सिक्किम पहुंचना
-
सीमा पर औपचारिकताएं और चीन की ओर प्रस्थान
-
तिब्बत में मानसरोवर झील और कैलाश पर्वत की यात्रा
-
कैलाश पर्वत की परिक्रमा (52 किमी) – जिसे ‘कोरला’ कहा जाता है
-
वापसी की प्रक्रिया
कैलाश परिक्रमा: आत्मा की अग्नि परीक्षा
तीर्थयात्रियों के लिए कैलाश पर्वत की तीन दिवसीय परिक्रमा सबसे चुनौतीपूर्ण और साथ ही सबसे पावन चरण होता है। यह परिक्रमा 52 किलोमीटर की होती है और इसमें लगभग 19,500 फीट की ऊंचाई तक चढ़ना होता है।
यहां की डोलमा ला पास को पार करना तीर्थयात्रियों के लिए शारीरिक और मानसिक संकल्प की अग्नि परीक्षा होती है। कहा जाता है कि यहां की परिक्रमा करने मात्र से मनुष्य को जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।
पर्यावरण संरक्षण पर भी विशेष ध्यान
इस बार यात्रा में पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी कई प्रयास किए गए हैं:
-
प्लास्टिक की बोतलों और पॉलिथीन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध
-
‘क्लीन कैलाश’ अभियान के तहत प्रत्येक तीर्थयात्री को कचरा संकलन थैली दी जा रही है
-
सीमा क्षेत्र में वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशीलता हेतु जानकारी दी जा रही है
राजनीतिक और आध्यात्मिक प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस यात्रा के फिर से शुरू होने पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा, “कैलाश मानसरोवर की यात्रा भारत की आध्यात्मिक चेतना की प्रतीक है। यह पुनः आरंभ होना श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय अवसर है।”
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बताया कि भारत-चीन संवाद के सफल परिणामस्वरूप यात्रा फिर से शुरू हो सकी है। वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने भी यात्रा की सफलता हेतु शुभकामनाएं दीं।
यात्रियों की भावनाएं: ‘हमारी आत्मा को शांति मिली’
प्रयागराज की रहने वाली 60 वर्षीय मंजू देवी, जो नाथू ला रूट से जा रही हैं, ने कहा, “पांच सालों से हर साल इंतजार कर रहे थे। आज जब तिब्बत की ओर बढ़े, तो लगा जैसे आत्मा किसी पवित्र आलोक में प्रवेश कर रही है।”
इसी प्रकार, जयपुर से आए 45 वर्षीय दीपक अग्रवाल ने बताया, “मेरे पिताजी की अंतिम इच्छा थी कैलाश यात्रा की। इस वर्ष अवसर मिला, तो मानो उनके आशीर्वाद से ही यह संभव हुआ।”
कैलाश यात्रा का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
-
स्थानीय रोजगार: उत्तराखंड और सिक्किम में स्थानीय गाइड, पोर्टर, होटल व्यवसायियों और ट्रांसपोर्ट सेवाओं को इससे आर्थिक संबल मिला है।
-
सीमा क्षेत्र का विकास: सड़क, बिजली और टेली-कम्युनिकेशन जैसे बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास हुआ है।
-
आधुनिक भारत की आध्यात्मिक छवि: यह यात्रा देश की वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक छवि को और सशक्त करती है।
निष्कर्ष: एक यात्रा, जो केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक है
कैलाश मानसरोवर यात्रा सिर्फ एक शारीरिक यात्रा नहीं है, यह आत्मा की यात्रा है, अपने भीतर झांकने की, अपने अहंकार को छोड़ने की, और जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने की यात्रा है।
वर्ष 2025 की इस पुनरारंभित यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत की सांस्कृतिक परंपराएं भले ही समय के थपेड़ों से रूकी हों, लेकिन समाप्त नहीं होतीं। वे पुनः जागृत होती हैं, जब श्रद्धा और संकल्प साथ हों।