दक्षिण कोरिया की राजनीति में गुरुवार को एक नया अध्याय जुड़ गया, जब राष्ट्रपति ली जे म्युंग ने चार बार के सांसद और डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता किम मिन-सोक को देश का अगला प्रधानमंत्री नियुक्त किया। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब देश आर्थिक मंदी से जूझ रहा है और समाज में गहराता राजनीतिक ध्रुवीकरण प्रशासनिक स्थिरता को चुनौती दे रहा है।
किम की नियुक्ति को संसद में ज़रूरी समर्थन मिला — 173 सांसदों ने पक्ष में मतदान किया, जबकि तीन मत विरोध में पड़े। तीन मतपत्र अमान्य घोषित किए गए, और मुख्य विपक्षी दल पीपुल्स पावर पार्टी (PPP) ने इस प्रक्रिया का बहिष्कार कर दिया।
प्रधानमंत्री के रूप में किम की प्राथमिकताएं
संसद में मतदान के बाद आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद किम मिन-सोक ने मीडिया को संबोधित किया और कहा:
“यह सिर्फ एक पद नहीं, एक सेवा का अवसर है। देश गहरे आर्थिक संकट में है — युवाओं की बेरोजगारी, निवेश में गिरावट, और बढ़ती महंगाई चिंता का विषय हैं। हम निर्णायक कदम उठाएंगे।”
उन्होंने कहा कि सरकार का फोकस आर्थिक सुधार, नीतिगत पारदर्शिता, और नवाचार के जरिए रोजगार सृजन पर होगा।
एक भावुक क्षण में उन्होंने “लोकतंत्र को कमजोर करने वाली ताकतों” की ओर इशारा करते हुए कहा:
“कुछ ताकतें लोकतांत्रिक व्यवस्था को तोड़ने की साजिश कर रही हैं। हमें एकजुट होकर उनका मुकाबला करना होगा।”
विपक्ष का विरोध और भ्रष्टाचार के आरोप
हालांकि, किम की नियुक्ति को विपक्ष ने सिरे से खारिज कर दिया है। PPP नेता चोई युंग-सू ने संसद के बाहर पत्रकारों से कहा:
“यह नियुक्ति लोकतंत्र का मजाक है। एक ऐसे व्यक्ति को कैसे प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है जिस पर वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप हैं?”
विपक्ष द्वारा लगाए गए प्रमुख आरोपों में शामिल हैं:
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उनके बेटे का कथित अनुचित प्रवेश एक शीर्ष विश्वविद्यालय में
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त्सिंगहुआ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान मिली छात्रवृत्तियों की पारदर्शिता पर सवाल
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उनकी घोषित संपत्ति और वास्तविक खर्चों में भारी अंतर
इन आरोपों पर अभी तक कोई स्वतंत्र जांच पूरी नहीं हुई है, लेकिन किम ने कहा है कि “सभी जांचों में पूरा सहयोग देंगे और कोई गलती साबित हुई तो जिम्मेदारी लेंगे।”
संसदीय नियम और राष्ट्रपति की भूमिका
दक्षिण कोरियाई संविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री की नियुक्ति के लिए संसद की पुष्टि आवश्यक है। राष्ट्रपति ली जे म्युंग ने किम की नियुक्ति के पक्ष में आए बहुमत के बाद तुरंत नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर किए।
राष्ट्रपति की प्रवक्ता कांग यू-जंग ने कहा:
“प्रधानमंत्री देश की आंतरिक नीतियों के प्रमुख संचालक होते हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच तालमेल से सरकार की स्थिरता सुनिश्चित होगी।”
वाणिज्यिक अधिनियम में बड़ा सुधार
प्रधानमंत्री की नियुक्ति के साथ ही संसद ने दो महत्वपूर्ण विधेयकों को भी पारित किया:
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कॉर्पोरेट बोर्ड कर्तव्यों में संशोधन – अब बोर्ड के सदस्य सभी शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह होंगे, न कि सिर्फ बहुमतधारी को।
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ऑडिटर चयन में सुधार – अब किसी भी बड़े शेयरधारक की मतदान सीमा 3% तक सीमित होगी, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही को बल मिलेगा।
इन सुधारों को घरेलू और विदेशी निवेशकों ने स्वागतयोग्य कदम बताया है।
मार्शल लॉ पर लोकतांत्रिक नियंत्रण
एक और ऐतिहासिक निर्णय में संसद ने मार्शल लॉ अधिनियम में संशोधन पारित किया है। अब किसी भी आपातकालीन स्थिति में पुलिस और सेना को संसद भवन में प्रवेश से पहले संसद की अनुमति लेनी होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह लोकतंत्र की रक्षा में महत्वपूर्ण प्रावधान है।
सत्तारूढ़ दल की रणनीति और एकता
डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया ने इस अवसर को लोकतंत्र की जीत बताया है। वरिष्ठ नेता पार्क जी-हुन ने कहा:
“अब भाषणों का नहीं, एक्शन का समय है। प्रधानमंत्री कार्यालय हर तीन महीने में सार्वजनिक लेखा रिपोर्ट जारी करेगा।”
सत्तारूढ़ दल ने स्पष्ट कर दिया कि वे देशहित में विपक्ष की सहमति के बिना भी ज़रूरी कदम उठाएंगे।
जनता की राय और सोशल मीडिया प्रतिक्रिया
किम मिन-सोक की नियुक्ति ने देशभर में बहस को जन्म दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर #PrimeMinisterKim, #NewLeadership, और #KoreaInCrisis जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई है:
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एक छात्रा ने कहा, “हमें उम्मीद है कि नई सरकार युवा बेरोजगारी को प्राथमिकता देगी।”
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एक युवा व्यवसायी बोले, “किम एक नीति आधारित नेता हैं। उन्हें निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देना चाहिए।”
वैश्विक दृष्टिकोण और समर्थन
किम मिन-सोक की नियुक्ति पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी आईं:
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अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा: “हम नए प्रधानमंत्री के साथ लोकतंत्र, मानवाधिकार और वैश्विक स्थिरता पर मिलकर कार्य करना चाहेंगे।”
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जापान और यूरोपीय संघ ने भी समर्थन व्यक्त किया।
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चीन ने हालांकि सीधे प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में आलोचना के संकेत मिले हैं।
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उत्तर कोरिया ने इस मुद्दे पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
विशेषज्ञों की दृष्टि
कोरियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली चांग वू ने कहा:
“किम के पास राजनीतिक अनुभव है, लेकिन उनके खिलाफ आरोपों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।”
वहीं आर्थिक विश्लेषक डॉ. यून सुंग का मानना है:
“अगर किम अपनी नीतियों को सख्ती से लागू कर पाते हैं, तो दक्षिण कोरिया दोबारा एशिया का आर्थिक टाइगर बन सकता है।”
चित्र विवरण
चित्र:
किम मिन-सोक, राष्ट्रपति ली जे म्युंग के साथ सियोल प्रेस सेंटर में नियुक्ति के बाद प्रेस को संबोधित करते हुए।
स्रोत: कोरियन न्यूज एजेंसी (KNA)
विशेष प्रोफ़ाइल: किम मिन-सोक
विवरण | जानकारी |
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पूरा नाम | किम मिन-सोक |
जन्म तिथि | 12 मार्च 1966 |
शिक्षा | त्सिंगहुआ यूनिवर्सिटी (चीन), सार्वजनिक प्रशासन |
राजनीतिक करियर की शुरुआत | 1996 – छात्र आंदोलन से सांसद तक |
दल | डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ कोरिया |
विवाद | संपत्ति विवाद, पारिवारिक आय, विदेशी छात्रवृत्ति |
प्रमुख अनुभव | चार बार के सांसद, राष्ट्रपति नीति सलाहकार |
नीतिगत प्राथमिकताएं | आर्थिक सुधार, युवाओं को रोजगार, प्रशासनिक पारदर्शिता |
पसंदीदा कथन | “लोकतंत्र केवल विचार नहीं, जिम्मेदारी है।” |
निष्कर्ष
किम मिन-सोक की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि दक्षिण कोरिया के लोकतांत्रिक भविष्य की परीक्षा है।
उनके लिए यह जरूरी होगा कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों का निष्पक्षता से सामना करें, और अपनी सरकार को आर्थिक और नीतिगत मोर्चों पर सफल बनाएं।
यदि वे जनता के भरोसे पर खरे उतरते हैं, तो यह नियुक्ति दक्षिण कोरिया की दिशा और दशा दोनों को बदल सकती है।
लेकिन अगर यह अवसर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप में खो गया, तो यह लोकतंत्र के लिए एक अवसर से अधिक संकट बन सकता है।