भारत-UAE 21वीं सदी की वैश्विक औद्योगिक प्रतिस्पर्धा अब केवल उत्पादन और लाभ पर आधारित नहीं रही। सततता (Sustainability), ऊर्जा दक्षता और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व जैसे मूल तत्व, अब हर रणनीतिक औद्योगिक गठजोड़ की नींव बन चुके हैं। इस पृष्ठभूमि में, भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच हालिया उच्च स्तरीय वार्ता, वैश्विक हरित औद्योगिक क्रांति की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
भारत के इस्पात और भारी उद्योग मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी और यूएई के अर्थव्यवस्था मंत्री अब्दुल्ला बिन तौक अल मैरी के बीच हुई बैठक में ग्रीन स्टील, हाई-ग्रेड एल्युमिनियम और सामरिक औद्योगिक साझेदारी पर केंद्रित चर्चा ने भविष्य के भारत-यूएई संबंधों की एक नई रूपरेखा प्रस्तुत की है।
1. द्विपक्षीय औद्योगिक सहयोग की पृष्ठभूमि
भारत और यूएई के बीच 2022 में हस्ताक्षरित CEPA (Comprehensive Economic Partnership Agreement) ने द्विपक्षीय व्यापार को अभूतपूर्व गति दी है। यह समझौता पारंपरिक व्यापार तक सीमित न रहकर उच्च तकनीक, खनन, धातु निर्माण और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग का आधार बना है।
2024-25 के दौरान भारत का कुल इस्पात उत्पादन 140 मिलियन टन को पार कर गया है और भारत 2030 तक 300 मिलियन टन इस्पात उत्पादन के लक्ष्य की ओर अग्रसर है। इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में ऊर्जा-कुशल तकनीक, कच्चे माल की सतत आपूर्ति और वैश्विक साझेदारी निर्णायक कारक होंगे।
2. उच्च स्तरीय वार्ता: प्रमुख विषयवस्तु
i. हरित इस्पात (Green Steel) में सहयोग
केंद्रीय मंत्री कुमारस्वामी ने हरित इस्पात उत्पादन को इस वार्ता का केंद्रबिंदु बनाया। भारत हर वर्ष बढ़ती औद्योगिक मांगों के साथ पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखते हुए उत्पादन करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस संदर्भ में, UAE की अक्षय ऊर्जा क्षमताएं और कच्चे माल की आपूर्ति संभावनाएं भारत के लिए पूरक बन सकती हैं।
“UAE भारत को 2030 तक 300 मिलियन टन इस्पात उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने में, कच्चे माल की सुरक्षा और ऊर्जा-कुशल तकनीकों की सहायता से, महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।” – एच. डी. कुमारस्वामी
ii. उच्च श्रेणी का इस्पात और एल्युमिनियम
भारत के ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, रेलवे, रक्षा और निर्माण क्षेत्रों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले स्टील और एल्यूमिनियम की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ रही है। मंत्री ने दोहराया कि इन सामग्रियों का संयुक्त उत्पादन और तकनीकी नवाचार भारत और यूएई के लिए रणनीतिक लाभ का क्षेत्र हो सकता है।
“ऑटोमोटिव, मोबिलिटी और उच्च-स्तरीय विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में हाई-ग्रेड मटेरियल्स की संयुक्त आपूर्ति एक विशाल व्यावसायिक अवसर है।” – कुमारस्वामी
3. ऊर्जा-कुशल उत्पादन: पर्यावरण के लिए उत्तरदायित्व
भारत और यूएई दोनों ही 2070 तक नेट-जीरो एमिशन के लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। इस संदर्भ में ऊर्जा दक्षता पर आधारित उत्पादन मॉडल, जैसे कि Hydrogen-based steel making, Carbon capture technology, Electric arc furnace systems पर सहयोग, रणनीतिक मायने रखता है।
यह साझेदारी वैश्विक ESG (Environment, Social & Governance) मानकों को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और तकनीकी भागीदारों को आकर्षित कर सकती है।
4. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (CPSEs) की अग्रणी भूमिका
वार्ता के दौरान भारत के तीन प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की भागीदारी पर विशेष रूप से चर्चा की गई:
i. सेल (SAIL):
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वर्तमान में स्टेविन रॉक एलएलसी, रस अल खैमाह से हर वर्ष 2.5 मिलियन टन लो-सिलिका लाइमस्टोन आयात।
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दीर्घकालिक आपूर्ति गठजोड़ की योजना।
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UAE के बुनियादी ढांचे में प्रीमियम भारतीय स्टील की संभावनाएं।
ii. एनएमडीसी (NMDC):
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UAE आधारित कंपनियों के साथ खनिज मूल्य श्रृंखला में सहयोग की इच्छुक।
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खाड़ी क्षेत्र में लौह अयस्क अन्वेषण और संयुक्त खनन परियोजनाओं के अवसर तलाश रही है।
iii. मेकॉन (MECON):
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खाड़ी क्षेत्र में तेल-गैस, स्टील प्लांट्स, स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में परामर्श सेवाएं प्रदान करने को तत्पर।
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हाल ही में दुबई में अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय की स्थापना।
तीनों कंपनियों – SAIL, NMDC, MECON – ने यूएई में स्थायी व्यापार समन्वय, संयुक्त उद्यम और तकनीकी विनिमय के लिए मजबूत मंच तैयार किया है।
5. सीईपीए को मजबूत करना: संरचित संवाद तंत्र
केंद्रीय मंत्री ने भारत-यूएई CEPA के तहत विशिष्ट औद्योगिक सहयोग की दिशा में कार्य करने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group) के गठन का प्रस्ताव दिया। इसका उद्देश्य होगा:
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लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला का अनुकूलन
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कच्चे माल की स्थिर आपूर्ति की रणनीति
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संयुक्त परियोजनाओं की रूपरेखा
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दीर्घकालिक औद्योगिक निवेश और नवाचार केंद्रों की स्थापना
6. रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत का दृष्टिकोण
भारत, यूएई को केवल एक व्यापारिक सहयोगी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक औद्योगिक साझेदार के रूप में देखता है जो वैश्विक औद्योगिक लैंडस्केप को पुनः परिभाषित कर सकता है।
“भारत यूएई के निवेशकों और उद्योग जगत के नेताओं को आमंत्रित करता है कि वे भारत आकर हमारे औद्योगिक परिदृश्य की गतिशीलता और विकास क्षमता का अनुभव करें।” – कुमारस्वामी
7. ग्रीन स्टील: निवेश के लिए वैश्विक केंद्र बनने की दिशा में भारत
भारत का लक्ष्य है कि वह ग्रीन स्टील के लिए वैश्विक उत्पादन और निर्यात केंद्र बने। इसके लिए भारत निम्न प्रयासों पर बल दे रहा है:
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Green Hydrogen Mission के अंतर्गत इस्पात उत्पादन को डीकार्बोनाइज करना
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Circular Economy के लिए स्क्रैप आधारित उत्पादन को बढ़ावा
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ईएसजी-केंद्रित निवेश फ्रेमवर्क विकसित करना
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प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थानों की स्थापना
यूएई के साथ यह साझेदारी भारत को वैश्विक बाजार में ग्रीन स्टील के भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित कर सकती है।
8. उच्च श्रेणी का एल्युमिनियम: रणनीतिक उपयोग और साझेदारी
एल्युमिनियम का उपयोग केवल घरेलू बर्तनों तक सीमित नहीं है। यह अब रक्षा, अंतरिक्ष, रेलवे, इलेक्ट्रिक वाहन और सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। भारत और यूएई इस क्षेत्र में:
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संयुक्त अनुसंधान प्रयोगशालाएं
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एल्युमिनियम ऑक्साइड (Alumina) से परिष्कृत उत्पाद
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ऊर्जा-कुशल स्मेल्टिंग तकनीक
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एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट हब के निर्माण की योजना बना सकते हैं।
9. यूएई: भारत के लिए ‘गेटवे टू अफ्रीका’
यूएई की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए अफ्रीका और यूरोप जैसे नए बाज़ारों तक पहुंचने का प्रवेशद्वार बन सकती है। संयुक्त संयंत्र, निर्यात-आधारित उत्पादन और तकनीकी विनिमय से दोनों देश तीसरे देशों में भी साझेदारी कर सकते हैं।
10. निष्कर्ष: साझा समृद्धि का औद्योगिक युग
भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच यह औद्योगिक सहयोग केवल व्यापार नहीं, बल्कि साझा दृष्टिकोण और समृद्धि का मिशन है। हरित ऊर्जा, टिकाऊ विकास और तकनीकी नवाचारों पर केंद्रित यह साझेदारी आने वाले वर्षों में:
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भारत को ग्रीन मेटल्स में वैश्विक नेता बनाएगी
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यूएई को औद्योगिक नवाचार केंद्र बनाएगी
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एशिया और मिडल ईस्ट में समृद्धि का नया अध्याय लिखेगी